आर्यवीर दल : एक परिचय
आर्यवीर दल अपने नाम की सार्थकता सिद्ध कर रहा है। ‘आर्य’ श्रेष्ठता का सूचक है ‘वीर’शब्द बहादुरी का और ‘दल’ नाम है समूह का अर्थात् “श्रेष्ठ वीरों का संगठन”। आर्य एक विचारधारा है जो व्यक्ति का विकास करती है। विचारों से ही व्यक्ति महान् बनता है और विचारों से ही उसका पतन होता है। अतः कैसे विचार-संस्कार -संकल्प हैं जो महान बनाते हैं ? “तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु” – जो कल्याणकारी है ,पवित्र है और उदात्त भावों से परिपूर्ण है, जिसमें गति ऊपर से ले जाने वाली है ,वही बहादुर को सुरक्षित रख सकता उसका सदुपयोग कर सकेगा ।अतः हमारे मनीषियों ने बड़ा सोच- समझकर आर्यवीर दल का नामकरण किया और इसके उद्देश्य भी महान् ही बनाए -शक्ति संचय और सेवा के माध्यम से अज्ञान ,अभाव ,आलस्य जैसे शत्रुओं का विनाश कर ,शुद्ध ज्ञान से सभी का प्रिय होकर ,अभावों को दूर करने के संकल्प को पूरा करने के लिए आलस्य भागकर ,सदैव सावधान अर्थात् जागरूक रहने वाला आर्य वीर अपने समाज को अथवा अपने संगठन(दल) को सुदृढ़ कर सकेगा। यह आर्य वीर दल आर्य समाज रूपी व्यक्ति का प्राण है,इसके बिना आर्य समाज निष्प्राण है, अधूरा है ,लंगड़ा है और अंधा है ।आर्य वीर दल आर्य समाज की आशा है, भविष्य है। आर्य वीर दल रूपी आधारशिला के बिना यह भवन धराशायी हो जाएगा। अतः अपने जीवन्त सपनों को साकार करने के लिए अपने हृदय के टुकड़ों ,अपने प्रिय पुत्रों को आर्य वीर दल में दीक्षित कराकर अपनी पुरानी धरोहर को सौंपने का दृढ़ संकल्प करो ।अपने कुलदीपों को दिवाकर बनाओ और विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा के लिए जैसे भगवान राम और लक्ष्मण को पिता दशरथ ने दीक्षित कर साथ वन में भेज दिया था उसी प्रकार महर्षि दयानन्द के यज्ञ की रक्षा के लिए प्रिय पुत्रों को दीक्षित करो और वन में न सही, शिविर में भेजने का संकल्प लो। शाखाओं का गठन कराकर उनमें जाने की आज्ञा प्रदान करो ।आर्यवीर महासम्मेलन में स्वयं साथ लेकर आओ और आप अपने हृदय को दशरथ की तरह कठोर कर लो – श्रद्धानन्द जी के पिता जी श्री नानकचन्द्र कोतवाल बन जाओ और उन्हें प्रयास करके सम्मेलन में, सत्संग में ,शाखा या शिविर में लेकर आओ । फिर देखो कि आप कितने सौभाग्यशाली हैं, क्योंकि मैं कहा करता हूं कि जिसका बालक आज्ञाकारी,परोपकारी, सदाचारी और चरित्रवान है उसके माता-पिता सौभाग्य शाली होते हैं। उनकी तपस्या ऋषियों की तपस्या की तरह महान् है । उसी क्रम में आप सदैव प्रयासरत रहें। मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूं कि आप सुपुत्रवान् हो गए हैं । आपके पुत्र सुपुत्र एवं शिष्य सत्शिष्य बनेंगें,अच्छे भाई बनेंगे और बड़े होकर अच्छे कार्य करता बनेंगे और समाज को शक्तिशाली बनाने के लिए अच्छे नागरिक बनेंगे। आजीविका के क्षेत्र में जहां भी जाएंगे , वहीं अपने सद्गुणों की सुगन्धि से पूरे वातावरण को सुन्दर एवं सुवासित करेंगे ।अध्यापक हैं तो सच्चे आचार्य की भूमिका निभाएंगे, व्यापारी हैं तो श्रेष्ठ व्यापारी बनेंगे और नेता भी बने तो सच्चे देशभक्त बनकर सेवा करेंगे और यदि देश की सीमा पर जाने का सौभाग्य मिला तो आर्य कैप्टन की तरह यशस्वी सैनिक बनेंगे ।
संक्षेप में यही है आर्यवीर दल का उद्देश्य और इसी भाव को लेकर अलीगढ़ में प्रान्तीय आर्यवीर महासम्मेलन करने जा रहे हैं । आपके परिवार में,आपके आर्य समाज में एक नई क्रान्ति आए और अपने-अपनी कर्तव्यों के प्रति तथा ऋषि ऋण को उतारने के लिए जीवन का प्रत्येक क्षण सदुपयोग में लग जाए इसी भाव को संजोकर आर्यवीर आपसे आशीर्वाद लेने के लिए निकल पड़े हैं।
अलीगढ़ महानगर में चतुर्थ प्रान्तीय आर्यवीर महासम्मेलन के रूप में आर्यवीरों का महाकुम्भ हो रहा है। उसमें संकल्प लिया जाएगा कि हम एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण करेंगे जहां तथाकथित जाति भेद समाप्त हो, जहां वर्गवाद को बढ़ावा ना दिया जाये। आर्यवीर सम्मेलन में जाति प्रथा, बलिप्रथा एवं भ्रूण हत्या जैसे कलंकों को मिटाने के लिए संकल्प लिया जाएगा । आर्यवीरों का मानना है कि खर्चीली शिक्षा से समाज त्रस्त हो चुका है,अतः शिक्षा में सुधार के लिए सरकार को सजग किया जाएगा। अश्लील चित्रों से चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता ,अतः ऐसे गन्दे चित्रों को हटाकर चरित्र निर्माण से ही राष्ट्र निर्माण की परिकल्पना को साकार किया जाएगा। जनमानस एवं प्रत्येक परिवार में सत् साहित्य से श्रेष्ठ संस्कार निर्माण का संकल्प लिया जाएगा। हम ऐसे परिवारों का निर्माण करेंगे जहां वृद्धों को सम्मान मिलेगा एवं सभी एक दूसरे के सुख-दुख में सहभागी होकर अपने-अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अपने अस्तित्व की रक्षा कर अपने को गौरवान्वित कर सकेंगे, परिवार में सुख और समृद्धि को बढ़ाते हुए सौभाग्यशाली बन सकेंगे। प्रत्येक ग्राम एवं नगर में जब ऐसे आदर्श परिवार बन जाएंगे तो आदर्श समाज का निर्माण होगा । उसे ही हम आर्य समाज कहेंगे। महर्षि दयानन्द के सपनों का समाज और स्वामी श्रद्धानन्द एवं पंडित लेखराम के सपनों का समाज बनाने के लिए ही तो नारायण स्वामी ने आर्यवीर दल की स्थापना की थी। उन्होंने उसे समय संकल्प लिया था कि जब तक 10000 आर्यवीरों की सूची मेरे पास नहीं होगी तब तक मैं आराम से नहीं बैठूंगा। जैसे स्वामी श्रद्धानन्द ने संकल्प लिया था कि जब तक ₹30000 गुरुकुल की स्थापना के लिए एकत्रित नहीं लोग कर लूंगा तब तक घर पर ही नहीं आऊंगा। आप उनकी भावनाओं को समझें -उन्होंने कितना तप किया है, कितने व्रत किए । आर्य जाति में प्राण फूंकने के लिए आवश्यकता है हमारे संकल्प की। आज की स्थिति में प्रत्येक आर्य निराशा की बातें करता है । सभी भूत की बातों को लेकर आत्म गौरव याद करते हैं, भविष्य के सपनों को निराधार करते हुए वर्तमान को खोजते हैं । मैं उन महानुभावों से कहना चाहता हूँ कि भविष्य की आधारशिला को वर्तमान पर टिकी है। अतः अपने-अपने वर्तमान को संभालो। किसी ने कितना सुंदर लिखा है-
भूत था महान्, भविष्य भी महान् है ।
तभी यह संभव है जो संभल गया वर्तमान है।
अतः अपनी वर्तमान को संवारने के लिए हमें संकल्प लेना है , सभी आर्यों को बच्चों सहित अलीगढ़ आना है, संकल्प दिवस पर यज्ञ में आहुति लगाकर अपने वर्तमान को सुंदर बनाने के लिए आलस्य समाप्त करना है ।
ऋषि- ऋण को उतारने का संकल्प लेना है और संकल्प लेना है अपने-अपने अहंकार को समाप्त करने का जो समाज में आई निराशा को समाप्त कर नयी आशा का संचार कर सके, आपस के भेदभाव मिटाकर स्नेह सूत्र को सुदृढ़ कर सके,आर्य समाज की गर्रिमा को सुरक्षित कर सके, आर्यवीर दल आपके द्वार पर भिक्षा की झोली लेकर आया है ।आप इसकी झोली में अपनी समस्त बुराइयां ,कमजोरी ,बीमारियां, ईर्ष्या-द्वेष एवं कलह-क्लेश डालकर निश्चित हो जाएं और अपने को पूर्ण रूप से हल्का अनुभव करते हुए परमात्मा का धन्यवाद करें । आप इस सुन्दर अभियान को और सुन्दर बनाने के लिए अपने तन -मन-धन का कितना सदुपयोग कर सकते हैं, चिंतन करें ।जो जिस दक्षता से कर सके उतना ही हमारा सौभाग्य होगा। प्रतिदिन एक घंटा हमें इस विचार को फैलाने के लिए, अपने संस्कारों को परिमार्जित करने के लिए देना है, तभी आप ऋषिवर दयानन्द के बगीचे की नर्सरी को प्रतिदिन खाद-पानी देकर उसे पुष्प वाटिका बना सकेंगे, क्योंकि विश्व-कल्याण और विश्व-सुरक्षा का ,शांति का भविष्य भारत है भारत का भविष्य आर्य समाज है और आर्य समाज का भविष्य आर्यवीर दल । इस आर्यवीर दल का संक्षेप में परिचय प्रस्तुत कर रहा हूँ।
स्वामी श्रद्धानन्द के अमर बलिदान के क्रमशः रक्त साक्षी पंडित लेख राम जी, महाशय राजपाल जी जैसे नेताओं और विद्वानों को विधर्मियों ने नष्ट कर दिया । 1927 में दिल्ली में प्रथम आर्य महासम्मेलन हुआ जिसमें आर्य रक्षा-समिति नारायण स्वामी जी की अध्यक्षता में बनाई गयी। 10000 अब वीरों को प्रवेश दिया गया जिन्हें धर्म रक्षा के लिए बलिदान हेतु तैयार रहना पड़ता था और 26 जनवरी 1929 को विधिवत् आर्यवीर दल समिति के नाम की घोषणा की गी। 1937 में आर्य प्रतिनिधि सभा (उत्तर प्रदेश) की अर्ध-शताब्दी मनायी गयी, मेरठ में आर्य महासम्मेलन किया गया और इसी अवसर पर प्रथम आर्यवीर महासम्मेलन शिवचन्द्र जी के संयोजन में संपन्न हुआ। उनके पुरुषार्थ से मेरठ, मुरादाबाद, चंदौसी, बरेली, हरदोई, लखनऊ, फैजाबाद,बनारस, मिर्जापुर,इलाहाबाद, कानपुर, फतेहपुर और आगरा में भी आर्यवीर दल की स्थापना की गई । 1938 में पानीपत का सम्मेलन चर्चा का विषय रहा। 1940 में गुरुकुल डोरली,मेरठ में प्रथम शिविर लगाया गया।इससे नई क्रांति आई और ओमप्रकाश त्यागी जी जैसे युवक आर्यवीर दल को मिले। फिर उन्होंने 1942 में गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ में 400 आर्यवीरों का शिविर लगाया जो देश की आजादी के लिए स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े और जेल-यात्राएं की, हैदराबाद में रजाकारों से संघर्ष किया और देश की आजादी के समय 1947 में रेलवे स्टेशनों पर तथा सेवा केन्द्रों पर देश की जनता की भरपूर सहायता की। 1940 में उड़ीसा में बाढ़ आई,1956 में दिल्ली में बाढ़ आई। आर्य वीरों ने सेवा कार्य मनोयोग से किया । 1975 में दिल्ली स्थापना शताब्दी, 1983 में अजमेर में महर्षि बलिदान शताब्दी, 1976 में लखनऊ में आर्यप्रतिनिधि सभा के शताब्दी सम्मेलन में सेवा कार्य किया जिसे आज भी लोग याद करते हैं । 1993 में लातूर (महाराष्ट्र) एवं गुजरात में भुज तथा 1999 में उत्तरकाशी के भूकम्प में एवं अभी गत वर्ष तूफानी समुद्र की लहरों से जो सुनामी कहर मचा उसमें भी आर्यवीर दल ने सेवा करने के लिए सर्वप्रथम अपनी उपस्थिति दर्ज करायी। उत्तरकाशी में 56 ट्रक खाद्य सामग्री टटीरी (मेरठ) के आर्यवीरों ने एकत्रित करके वहां वितरित की । डॉ॰ देवव्रत आचार्य एवं ब्रह्मचारी राजसिंह जी भी पूरे समय वहीं पर रहे । सहारनपुर एवं पानीपत के आर्य वीरों का योगदान भी सराहनीय रहा। इसी प्रकार स्वामी दयानन्द एवं गुरु विरजानन्द के 150 वें गुरु-शिष्य मिलन के उपलक्ष में अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन मथुरा में आर्यवीरों ने अपनी सेवा के माध्यम से लाखों आर्य श्रद्धालुओं का हृदय तो जीता ही, साथ ही सम्मेलन की सुरक्षा, आवास-व्यवस्था में अकथनीय कार्य किए । आर्यवीर दल जनपद अलीगढ़ ने सभी की भोजन-व्यवस्था करायी।
आज भारत के 18 प्रान्तों में आर्यवीर दल की हजारों शाखाएं हैं। विदेशों में भी शाखाएं चल रही हैं । त्यागी, तपस्वी और आजन्म ब्रह्मचारी रहने का संकल्प लेकर अनेक युवक कार्य कर रहे हैं। आर्य समाज के क्षितिज पर तेजस्वी नक्षत्रों का उदय हो रहा है जिनके त्याग,तप एवं पुरुषार्थ से देव दयानन्द के स्वप्न निश्चित रूपेण साकार होंगे ऐसा हमारा पूर्ण दृढ़ विश्वास है। ईश्वर की कृपा और विद्वानों के आशीर्वाद की अभिलाषा हृदय में लिए चल पड़े हैं देव दयानन्द के दीवाने । लिए इन्हें तन-मन-धन से सहयोग प्रदान करें ताकि आपका जीवन भी सफल हो जाए।
स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती
संस्थापक गुरुकुल पूठ, गाजियाबाद