आर्यवीर दल का गौरवमय अतीत
आर्यवीर दल का जन्म रक्त की उष्ण धारा से हुआ। वैदिक धर्म का एक-दो नहीं बीस के लगभग छोटे-बड़े आर्यों का बलिदान हुआ।आर्य समाज को दबाने व मिटाने की सरकार की नीति थी। तब महात्मा हंसराज की अध्यक्षता में प्रथम आर्य महासम्मेलन हुआ। आर्य जनता अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए सरकार से टक्कर लेना चाहती थी। महात्मा हंसराज किसी प्रकार का संघर्ष नहीं चाहते थे। आर्यों के क्रोध की आग को बुझाया न जा सका । अध्यक्ष महात्मा हंसराज का साथ देने वाले केवल दो व्यक्ति निकले।
उस महासम्मेलन से आर्यवीर दल का जन्म हुआ था। आर्यवीर दल ने बहुत छोटे थोड़े समय में आर्य समाज को कई हुतात्मा दिये। कई अच्छे लेखक दिये। कई संघर्षशील सेनापति दिये।कई शास्त्रार्थ महारथी दिये। आर्य सिद्धान्तों पर होने वाले प्रत्येक प्रहार का उत्तर देने वाले कई निडर धर्म रक्षक दिये। आर्यवीर दल आगे चलकर लीडरी की राजनीति की सीढ़ी बना दिया गया। जिन्होंने आर्य वीर दल को संगठित करके ऐसे सब काम किये आज का आर्यवीर दल जिनकी चर्चा भी नहीं करता। शिवचन्द्र जी व वीर धर्मप्रकाश के बलिदान वह वीरता को बिसराना क्या कोई साधारण+सा पाप है? गुंजोटी का वीर वेद प्रकाश आर्यवीर दल की ही दिन था। उसने धर्म पर शीश कटा कर इतिहास की धारा ही बदल डाली। दक्षिण में भी श्री वीरभद्र जैसे परम पराक्रमी बलिदानी सेनापति को पाकर आर्यवीर दल ही नहीं सम्पूर्ण आर्य समाज धन्य-धन्य हो गया। श्री शेषराव जी वाघमारे घोड़े पर सवार होकर सोलापुर में आर्य वीर दल का शक्ति प्रदर्शन कर रहे थे। एक हकीम जी हैदराबाद में एक उर्दू दैनिक के सम्पादक को सोलापुर में आर्य सत्याग्रह शिविर में ले आये। यह हकीम जी हाजी भी थे।आर्यवीर दल का वह प्रदर्शन देखकर संपादक का दिल दहल गया। उसने जाकर आर्यों की शक्ति पर एक ऐसा सम्पादकीय लिखा कि निजामशाही कांप उठी। यह घटना मुझे स्वयं हाजी साहिब ( पं० रुचि राम जी) ने सुनाई थी।
गुलबर्गा के आर्य महासम्मेलन के समय निजाम शाही ने पंडित नरेंद्र जी की हड्डियां ही तोड़ दीं। विनायक राव जी की भी पिटाई की गयी। श्री हीरालाल जी को जान से मार डालने में क्या कमी छोड़ी? तब भी पुलिस ने आर्यवीर दल के वीरों से झगड़ा करके दंगा किया था।
पंजाब के पौराणिकों ने आर्य समाज पर वार करते हुए एक के बाद दूसरी अश्लील पुस्तकें प्रकाशित कीं तो दीनानगर के आर्यवीर दल के आर्यवीरों ने किसी भी विद्वान् की सहायता के बिना मुँह तोड़ उत्तर देखकर विरोधियों को चुप करवा दिया। कविताओं का उत्तर कविताओं से दिया गया। सब कवितायें आर्यवीरों ने स्वयं ही रची थीं।
सियालकोट में आर्यवीर दल के एक कार्यकर्त्ता श्री प्रेम जी पेंटर थे, वह इस्लाम वह ईसाई मत की बहुत अच्छी जानकारी रखते थे। वैदिक धर्म पर कोई भी वार करें प्रेम जी सप्रमाण उत्तर देने के लिए सदा तत्पर देखे गे। मुझे आज भी याद है कि विधर्मियों के उत्तर में लिखी गई श्री अनूपचन्द जी ही आफताब पानीपती की पुस्तक ‘ऋषि का बोलबाला’ मैंने प्रेम जी की प्रेरणा से ही पढ़ी थी। श्री प्रा० उत्तमचन्द जी ‘शरर’ भी बहुत छोटी आयु में शंका-समाधान व शास्त्रार्थ करने लग पड़े थे।
आर्यवीर दल की इन्हीं सजीली परम्पराओं व वातावरण का मुझ पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि 1954 में कादियां में ‘बदर’ साप्ताहिक में आर्य समाज के विरुद्ध छपे एक लेख को लेकर मैं पं०त्रिलोक चन्द्र के घर गया। उनसे कहा कि इसका उत्तर छपना चाहिए। श्रद्धेय पण्डित जी ने कहा, “अब हम नहीं आप उत्तर दिया करेंगे।” मैंने बार-बार कहा कि आप उत्तर दें। पण्डित जी ने आग्रह पूर्वक मुझे ही उत्तर देने की प्रेरणा व आज्ञा दी। मैंने ‘आर्यवीर’ में ‘कादियानी करवटें’ शीर्षक से ऐसी लेख माला दी कि पूज्य पण्डित शान्ति प्रकाश जी व लौहपुरुष स्वामी स्वतन्त्रतानन्द जी महाराज भी इस लेख माला को पढ़कर गद्गद् हो गये। स्वामी जी महाराज ने तो श्री ओमप्रकाश वर्मा आदि उपदेशकों के सामने कहा’ “ आर्य धर्म पर वार हो तो यह सम्भव नहीं की राजेन्द्र चुप रहें। आर्यवीर दल से तब हमें प्रेरणायें ही कुछ ऐसी मिलती थीं।
1945 में आर्य समाज सियालकोट के वार्षिकोत्सव पर पं० मेधातिथि के भाषण के समय मुस्लिम लीगी पुलिस से उत्तेजना पाकर उत्सव पर टूट पड़े । तब आर्यवीर दल के वीर सैनिकों ने अपने शौर्य के जो चमत्कार दिखाएं उनका शब्दों में बता पाना कठिन है। 1946 के मई या जून मास की घटना है। आर्य समाज सियालकोट के सामने मुस्लिम लीगी युवक इकट्ठे हो गे। आर्य स्कूल व आर्य पुत्री पाठशाला की छुट्टी का समय होने वाला था। पुत्री पाठशाला समाज मंदिर में थी। आर्य समाज की कन्याओं की रक्षा का प्रश्न था। पुलिस एक विशेष योजना के कारण पास ही किले में चुप्पी साधे बैठी थी। तब हमारे देखते-देखते आर्यवीर दल के साहसी नगरनायक श्री ओमप्रकाश आर्य झट से आर्य समाज के द्वार पर पहुंच गये । कई और आर्यवीर भी आ गये । छुट्टी की घंटी बजी स्कूल के दो साहसी अध्यापक भीड़ को चीर कर आगे निकले और मुस्लिम लीगी छात्रों को हटाने लगे। जमकर लड़ाई हुई ।श्री ओम प्रकाश जी भूखे सिंह के समान आक्रमणकारियों पर टूट पड़े। मेरे ज्येष्ठ भ्राता श्री यशपाल भी अपने साहस के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। अपने नगर नायक को देखकर यश जी भी अपनी पुस्तकें फेंक कर गुण्डों पर झपट पड़े। आधे घंटे के भीतरी सब गाजी भाग खड़े हुए। आर्यवीरों के साहस व शौर्य की यह गाथा मेरे लिए अविस्मरणीय है।
प्राध्यापक राजेन्द्र जिज्ञासु
वेद सदन , अबोहर ( पंजाब)